मैं क्या बोलूँ ,बतला दो तुम
गूंगे को स्वर दे डालो तुम
रीता है या मेरा जीवन
अपने रंगों से रंग दो तुम
कोई पीड़ा तो दे डालो
मैं जिस से मन को बहका दूँ
कोई अवसाद नया दे दो
जिससे अपना मन मैं भर लूँ
मुझको ऐसा ही दुःख दे दो
जिसको हर पल अपना लूँ मैं
मुझ को इतना तडपाओ तुम
खुद तड़पन ही बन जाऊं मैं
बिन आंसू के जीवन ही क्या
बिन पीड़ा के जीवन ही क्या
पीडाओं की गहराई में
क्यों न मुझ को दफ्नादो तुम
आंसू के उमड़े दरिया में
क्यूँ न मुझ को नहलादो तुम ?
1982
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