कभी कभी
न जाने क्यों
न जाने कैसे
झरोखों से सहस्त्रों
चन्द्र किरणों का आकर
लौट जाना और
इस घर का अँधेरे में समां जाना ...
कभी कभी उगते सूरज की
रक्तिम अभा में
घास पर छाई ओस का
वाष्पित हो जाना और
मन में कुहासा भर जाना ..
1980
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