एक नन्ही सी कलम,
और नाज़ुक से गीत
कभी कभी अपनी
खामोश सदाओं से
यूँ ही पुकार लेते हैं
कहते है -भूल जाओ सब
कुछ पल जी लो
अपने करीब आकर
कोई गीत कहता है -
मेरे नज़दीक आके देखो
भुला दो कहीं कुछ और जो है
राख के ढेर, आँखों में उलझने के लिए
कांटे चुभने को ,फुल लुभाने के लिए
बहुत करीब आके देखो
मेरी गुमनाम खामोशी में
खुद को छिपा के देखो.
नन्हे मासूम बच्चे सा
बनके अनजान ,तेरी गोदी में
कभी सिमटा के अपने अंगों को
तेरे साए में समां जाना
फिर कुछ चौंक कर सिहर जाना
रोना मुश्किल है आवाजों में
होठों से बात का मुकर जाना
बहते ,उमड़े गर्म अश्कों से
गीत का आँचल भिगो जाना
कलम और गीत का सुन्दर सामंजस्य किया है आपने इस रचना में।
जवाब देंहटाएंबहत सुन्दर।