कविता ,
एक फल है
कहीं लटका हुआ
एक पौधे पे ...
कई साल पहले,
कोई बीज
उड़ आया था
मेरे आँगन की
टूटी ईंटो के बीच,
अटक गया था आकर ,
मैंने परवाह
कभी की ही नहीं ..
लेकिन अब,
इसकी किस्मत बदली है
मेरी एक चाहत है ,
एक ज़रूरत है -
दुकानों तक जाती हूँ ,
लौट आती हूँ ,
बागों में भटकती हूँ
पर कुछ नहीं पाती हूँ
बस निराश,हताश ,
लौट आती हूँ
और अक्सर सींचा करती हूँ
नन्हे पौधे को ,
जब भी वक्त मिल जाए
इस से प्यार करती हूँ
और कब फल निकल आये
'इंतज़ार करती हूँ..
1983
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