उड़ गया उड़ता गया वह एक पंछी
प्राण पाए बंद घुटती कोठरी में ..
प्राण पालन का जहां आधार था बस एक तंतु
तोड कर उस तंतु को वह आ गया
रोशनी भरी अंधेरी गलियों में ..
भटकता रहा फिर भटकता रहा ..
भूलता गया सारे वादों को और
आगे इरादे बनाता गया .
चुन एक पिंजड़ा मजबूत सा
मगर वह था ख़ाक का धूल का .
पिंजरे को सजाने के लिए
आकाश कुसुम पाने के लिए
पिंजरे को लेकर वह उड़ने लगा ..
मगर राह में व दागा दे गया
फिर अकेला ..निः सहाय ..
बेबस पंछी उडता गया उडाता गया
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