टटोला बहुत पलों तक
अपने अहाते को
अपने अहाते को
हर ओर ,हर दिशा में ,
नहीं मिला वह
नहीं मिला वह
जिसे कहते हैं सुख.
मेरे आँगन में नहीं था
मेरे आँगन में नहीं था
शायद ड्योडी पर,
धुंधलके में दिखा ..'कुछ '
धुंधलके में दिखा ..'कुछ '
मेरे हाथ टकराए उससे , अँधेरे में ,
वह दर्पण था जिसमे एक प्रतिबिम्ब था
जिसकी आँखों में कुछ बिंदु थे चमकते से
मैंने उन्हें पलकों में सहेज लिया ...
आर्द्र हो आयीं दोनों आँखें
पाकर अपनी अमानत को ,
वही था सुख मेरा
पाकर अपनी अमानत को ,
वही था सुख मेरा
अपने आंसू पी जाने का .
1977
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