समझ कर तुमको शांत महान
प्रेम पंकज का मुकुलित रूप
स्वीकार तेरा शीतल गान
समर्पण मौन किया निशि भूप !
किया तेरी आभा का पान
मान के तुझ को सत्य स्वरूप .
पाया अविरल ,अक्षुण मकरंद
झरे जिसमे आनदं अनूप !
दिवस आया तो जाना भ्रान्ति ,
भूल थी व केवल अज्ञान
दिवा न कहा सखी अनजान !
तुच्छ निकृष्ट कोटि का ज्ञान !
स्वप्न से जागे जैसे प्राण
पाया मानस ने तेर्ज महान
अहा, सूर्य देव, प्रणाम !
दिया है तुमने जीवन दान !
करो अब मन को शान्ति प्रदान .
किन्तु रवि थे इतने क्लांत
किया चुप के सांझ प्रस्थान .
देख रवि निशिपति का संधान
समेटा आँचल, छिद्रित ,म्लान !
किया फिर उडगन का आह्वान !
1977
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