समय से यूं हूँ परे
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सोमवार, 15 जुलाई 2013
धुआँ
कहाँ से उठता है ये धुआँ ,क्यों ?
छा जाता है सर से पाँव तक ,
जिसकी बदबू फ़ैल जाती है
चारों और मेरे और ठंडा हो कर
जन जाता है कालिख की तरह
उसे जब जब कुरेद तो
किर किराने लगता है वह ..
1977
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